Friday 9 April 2021

कल-आज-कल।

 मैं कल था,
मैं आज भी हूँ,
पर जो मैं कल था,
वो आज होने पर मुझे ऐतबार है।
मैं आज हूँ,
मैं कल भी रहूंगा,
बस जो मैं आज हूँ,
निश्चित ही कल नही रहूँगा।
घड़ी की हर एक सुई के साथ,
हम उस होने वाले कल में जा रहे है,
तो फिर क्यों आज की फ़िक्र करे,
और क्यों इंतेज़ार करे कल के होने का,
क्या पता कल हो भी की नही,
इसलिए आज में रहिये,
हो सकता है
आज ही आख़िरी हो।
खुदाहफीज़। 

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