Tuesday 18 September 2018

आपकी लाड़ली।

जब मैं घर से निकली थी,
तो ज़ेहन में कई सवाल थे,
चिंताएं थी,माथे पर लकीरें भी थी,
और हो भी क्यों ना,
शहर बदलने के लिए,
दिल और दिमाग दोनो की रज़ामंदी तो चाहिए न,
और फ़िर मैं ठहरी घर की सबसे नटखट क़िरदार,
जिसकी एक ख़्वाईश पर,पूरे घर को,
मीना बाज़ार की तरह सज़ा दिया जाता था,
पर अब कुछ तो तब्दीलियत-सी आ गयी है,
क्योंकि ये घर की नटखट किरदार अब घर से थोड़ी दूर है।
घर पर जब तक दो-चार बार बात न हो जाये,
तब तक उन्हें लगता ही नही कि मैं ठीक हूँ,
मेरी खाने की चिंता,मुझसे ज़्यादा तो उन्हें रहती है,
बाबा का रोज़ एक कॉल आफिस से आता है,
जैसे रोज़ उनके लिए मैं एक सुकून की हाज़री हूँ,
वो बहुत फ़िक़्र करते है मेरी,
माँ ने तो अब वीडियो कॉल करना भी छोड़ दिया है,
ताकि मुझे देखकर उनके आंखों में आंसू न झलक पड़े,
पर वो ही जिनको हमेशा फुर्सत रहती है मेरे लिए,
तभी तो वो मेरा हालचाल पूछने में कोई कसर नही छोड़ती,
सुबह के नाश्ते से लेकर रात के खाने तक,
मुझे कुछ याद रहता हो या नही,
लेकिन उन्हें सब याद रहता है,
पर मैं भी आपसे कुछ कहना चाहती हूँ माँ-बाबा,
कि अब आपकी ये गुड़िया,
बड़ी और ज़िम्मेदार दोनो हो गयी है,
मुझे मालूम है वैसे
कि आपके रोज़ दो-चार कॉल आएंगे ही आएंगे,
और इससे मुझे कोई तकलीफ़ भी नहीं,
आपकी आवाज़ सुन लेती हूँ,
तो लगता है जैसे दिन की सारी थकान
एक पल में दूर हो गयी हो,
बस आप हमेशा खुश रहिये,
मैं भी यहाँ काफ़ी खुश हूँ,
पढ़ लेती हूँ,थोड़ा घूम लेती हूँ,
एक किताबखाना है,
जहाँ किताबें मेरी दोस्त है,
उनसे बात कर लेती हूँ तो ख़ालीपन भी नही लगता,
बस अब रात हो गयी है,
कल सुबह आपके कॉल का फिर इंतज़ार करूँगी,
शब्बाख़ैर।