वो मर्द बोहोत बुज़दिल होते हैं
जो घर में ख़ुदको शेर समझते हैं,
उन मर्दो में मुर्दा देह के सिवा कुछ नही होता,
सोच में दीमक लग जाती है
और हो जाती है बुद्धि भ्रष्ट।
ये उस पौरुष के सिद्धांत को भी,
कुछ ज़्यादा गम्भीरता से लेते हैं
जो असल में एक छल है,
एक ऐसा छल जिसे दुनिया के,
अधिकतम मर्दो ने धर्म बना रखा है,
और आज की कहानी नही है ये,
एक आदर्श कहानी भी नही है ये,
ये कहानी है बरसों पुरानी,
जो आज तक प्रासंगिक है,
हमारे घरों में, पड़ोस में,
शहरों में, गाँवों में, ब्राह्मणों में,
क्षत्रियों में, वैश्यों में, शूद्रों में,
सब में।
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