क्या लिखा जाए,
ये सोचने से बेहतर है
कि कुछ तो लिखा जाए,
क्या के प्रश्न में उलझने से,
तृप्ति नही मिलती और
मन भी स्थिर नही रहता,
और हम एक बिंदु से दूसरे तक,
सिर्फ विहार करते रहे जाते है।
दरसल लिखा जाना अपने आप में,
एक कामयाबी है,
तब आपके जीवंत रहने की
गुंजाइश भी ज़्यादा रहती है,
और लिखा हुआ भी परस्पर,
जीवित हो उठता है।
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