Monday 24 July 2017

याद।

तुम्हे देखकर लगता है जैसे बिखर जाऊँगा मैं,
ऐसी शख्सियत लेकर घूमती हो तुम,
आँखों में उतर तो सकता हूँ तुम्हारे,
पर नज़रे,दो-चार करने की हिमायत नही करती,
आज सिलसिला इतना लंबा हो गया है,
कि जाम पर जाम ख़त्म होने की उम्मीद है,
लेकिन वो इश्क़ के धागें अभी-भी पिरोने बाकि रह गए है,
और जिस दिन धागा सुई के आरपार हुआ तब एक हल्का,
चमकीला,रेशमी कपड़ा तैयार होकर,
बाज़ार में बिकने जायेगा,
और वो होगा मेरे मुख्तलिफ़ होने का सबूत,
जब एक स्पर्श तुम्हारा और मेरा साथ होगा,
वो होगा हमारे आफ़ताब का सबूत।

Sunday 9 July 2017

मैक़दे में बैठा हूँ।

मैक़दे में बैठा हूँ नशे की चुनर ओढ़कर,
तस्वीरें मेज़ पर रखी है,मरासिम की मेरे,
देखकर जिन्हें,यादें ख़ुशबू की तरह फैल जाती है,
यही उफनता शबाब है,मरासिम का मेरे।

एक बोतल मदिरे से मेरा कुछ बिगड़ तो नही जायेगा,
मग़र आड़े आने को कुछ है,तो मज़हब है मेरे,
और ये मौसम क्या मेरे साथ चलने वाला है,
सुना है,आज तो काफ़िले में बादल भी है मेरे।

ये जिंदानुमा लाश अब खानाबदोश हो चली है,
इसे ले जाकर बेच दो,देखते है क्या दाम देता है मेरे,
उन्ही पैसों से अर्थी का हिसाब-किताब देख लेना,
आदत में नही है,क़र्ज़ लेकर जन्नत में जाना मेरे।

Thursday 6 July 2017

फ़र्ज़।

फ़र्ज़ है मेरा,
इज़हार करने का,
दिल और दिमाग की कशीदाकारी को दिखाने का,
वो बातें बताने का,
जिनकी वजह से आज इज़हार की नौबत आ गयी,
इज़हार करने के बाद,
पानी का घूँट हलक से उतर तो जायेगा,
मगर,ये दिन कैसे बीतें,कि वो सामने बैठी थी,
और सूरत देखकर हाल-ए-वक़्त में उन्होंने बेवा कर दिया,
फिर,जवाब आने को होगा,
कुछ साँसे ऊपर चढ़ेंगी,
कुछ फिर हलक पर कब्ज़ा करेंगी,
बैठा है दिल के दरवाज़े पर संतरी,
आइये,इंतज़ार है।