तुम्हें ग़र कभी किसी से बात करनी हो,
तो मेरा ख़्याल कर लेना,
शायद तब मैं,
तुम्हारे फ़िराक़ में ही बैठा मिलूँ,
कोई पुराना ख़त या नज़्म पढ़ते हुए।
उसी डायरी के अगले पन्ने पर,
तुम्हारा दिया हुआ मोरपंख रखा होगा,
और मैं बा-इज़्ज़त उसे उठाकर,
वापस रख दूँगा,
इस ख़्याल में
कि एक दिन तुम किसी बहाने
वही डायरी खोलकर देखोगी,
जब इश्क़ हमारा,
मोरपंख जितना
बूढ़ा हो चुका होगा।
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