Friday, 31 March 2017

बचपन।

पता नहीं कहाँ गए वो दिन,
जिन्होंने शुरूआत में बहुत हँसाया था,
जब ऊंगलियाँ बालपन में थी अपने,
मन बेपरवाह रहता था,पर अब
माथे पे लकीरो से,माथे पर,
रेशम का रास्ता बन चुका है,
तू ही जानता है ,कहाँ गए वो दिन।
झबलो से शुरुआत की थी मैने अपने दिनों की,
आज सूट पहनकर उसी दिन को धीरे से अलविदा करता हूँ,
कुछ तो अलग रहता है वो वक़्त,
जिसे हम बचपन कहकर पुकारते है,
तू ही जानता है,कहाँ गए वो दिन,
धीमे, हल्के, और कच्चे,
बचपन के वो दिन।

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