मन अट नही रहा,
चारो तरफ लोगो का ज़खीरा,
फिर भी लगता है जैसे,
किसी शमशान में अकेले घूम रहा हूँ,
वैसे कल होली की मुबारकबाद,
दे ही दी उन्होंने,
लगा की अब इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात क्या है,
पर आज फिर सब रुआँसा हो गया,
फ़र्क़ है आज और कल में,
और मन भी तो अपना मालिक है,
ना मेरी चलने देता है,
ना दिमाग की सुनता है,
बस भटकता है इधर-उधर,
किसी की तलाश में।
चारो तरफ लोगो का ज़खीरा,
फिर भी लगता है जैसे,
किसी शमशान में अकेले घूम रहा हूँ,
वैसे कल होली की मुबारकबाद,
दे ही दी उन्होंने,
लगा की अब इससे ज़्यादा ख़ुशी की बात क्या है,
पर आज फिर सब रुआँसा हो गया,
फ़र्क़ है आज और कल में,
और मन भी तो अपना मालिक है,
ना मेरी चलने देता है,
ना दिमाग की सुनता है,
बस भटकता है इधर-उधर,
किसी की तलाश में।
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