Wednesday 8 March 2017

सुकूँ।

आज लिखकर भी सही नही लग रहा,
कुछ अधूरा है शायद,
कलम भी है मेरे पास ,
कागज़ भी है,
पर सुकूँ नहीं,तभी कही,
कुछ अधूरा है शायद।
ये सुबह से लेकर शाम तक भागते लोग मेरी क्या मदद करेंगे,
इन्ही के पास सुकूँ नही तो जाऊ कहाँ?
या अल्लाह बक्श दे न कुछ आराम,
सुकूँ से ही रह लूँगा कुछ दिन,
जहाँ मेरे लोग होंगे,मेरी सल्तनत होगी,
और मैं उस सल्तनत का बादशाह रहूँगा।

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