कैसी है बेरुख़ी हमसे,
बात करने को कोई तैयार नही।
मझधार में है कई हफ़्तों से,
समझाने को कोई तैयार नही।
ज़ेहन में रखी है कुछ ख़ास बाते,
मगर कोई ख़ास बनने को तैयार नही।
इश्क़ करने को बेकरार है हम,
पर शायद, बेग़म अभी तैयार नही।
जुल्फ़े माथे से हटाने का लुत्फ़,
अभी वो देने को तैयार नही,
कैसी है बेरुख़ी हमसे,
बात करने को कोई तैयार नही।
बात करने को कोई तैयार नही।
मझधार में है कई हफ़्तों से,
समझाने को कोई तैयार नही।
ज़ेहन में रखी है कुछ ख़ास बाते,
मगर कोई ख़ास बनने को तैयार नही।
इश्क़ करने को बेकरार है हम,
पर शायद, बेग़म अभी तैयार नही।
जुल्फ़े माथे से हटाने का लुत्फ़,
अभी वो देने को तैयार नही,
कैसी है बेरुख़ी हमसे,
बात करने को कोई तैयार नही।
No comments:
Post a Comment