Thursday, 16 February 2017

सफ़र।

कितना जल्दी अपनों से दूर हो गया,उस उम्र में जब हम अपने
आने वाले वक़्त के बारे में सोचते है,
और मेंनें उसी वक़्त अपनों को अलविदा कहाँ,
ताकि आने वाले वक़्त के बारे में सोच सकूँ पर उनके पास रहकर नही,उनसे कई मीलों दूर ,जहाँ सिर्फ मैं हूँ और मेरा फ़न है।
जब भी बाबा से बात होती है तो पूछते है कब आओगे,
और मैं हमेशा कहता हूँ इस महीने के आखिरी तक,
महीने निकलते जा रहे है,पर ख़त्म होने का नाम नही ले रहे।
कुछ तो उदासी मुझमें भी अब आने लगी है,
पर हौसले उन्ही के दिए हुए है इसलिए इस सफ़र को पूरा करने का दम, कही किसी कोने में अब भी बरक़रार है,
बस अब ज़रुरत है ,तो उसकी तलाश करने की,
जिसका बेसब्री से मुझे इंतज़ार है।

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