Friday 10 February 2017

आशियाना।

लगता है कही चलो,अपना आशियाना लिए,
सबसे दूर जहाँ सिर्फ मैं रहूँ और कुछ चीज़े,
तसल्ली हो जाये कि लाश इसी मिट्टी की होगी,
और साँसे, इन हवाओ में कही झिलमिल होकर खो जाएँगी,
और तब मैं कह सकूँगा की,
कुछ नही चाहिए मुझ जैसे एक इंसान को,
बस जन्नत भी मेरी इन्ही वादियों में बना दे,
कोई ये नही बोल सकता यहाँ की मेरा वजूद क्या है,
किस औकात से रह रहा हूँ इस सुकूँ में,
पर कुछ कर रहा हूँ मैं ,वही मेरा खुदा है,
वही मेरी इबादत और, वही मेरी ख़ता।

No comments:

Post a Comment