Tuesday, 28 February 2017

खफा।

खफा-खफा से है वो हमसे,
अब तो कुछ बात ही नही करते
वक़्त हो गया एक जवाब देने का,
लेकिन दूर कही वो सन्नाटे में है।
और हम,अपनी फ़र्ज़ अदायी में,
फ़र्ज़ है निग़ाह नही मिलनी चाहिए,
नही तो नापाक करार दिए जायेंगे,
लेकिन कभी कोई इरादा भी नही था,
कि इस अदब के बाहर जाए,
पर इश्क़ ख़ता नही,
और मैं उस ख़ता का मुजरिम नही,
हमने तो सफ़र अकेले शुरू किया,
और अकेले ख़त्म कर देंगे,
पर चुभने की बात ये है कि,
खफा-खफा से है वो हमसे,
अब तो कुछ बात ही नही करते।
                                           -साँझ।

Saturday, 25 February 2017

तैयार नही।

कैसी है बेरुख़ी हमसे,
बात करने को कोई तैयार नही।
मझधार में है कई हफ़्तों से,
समझाने को कोई तैयार नही।
ज़ेहन में रखी है कुछ ख़ास बाते,
मगर कोई ख़ास बनने को तैयार नही।
इश्क़ करने को बेकरार है हम,
पर शायद, बेग़म अभी तैयार नही।
जुल्फ़े माथे से हटाने का लुत्फ़,
अभी वो देने को तैयार नही,
कैसी है बेरुख़ी हमसे,
बात करने को कोई तैयार नही।

Saturday, 18 February 2017

दिलकशी।

हमसे मत पूछना कि मोहब्बत कैसे की जाती है,
मना कर-कर के हम इसी दरियाँ में डूब गए।
पहले लगता था दरियाँ का एक बूँद पानी हमे नही छुयेगा,
पर आज उसी पानी में,नाव बनाकर,किसी के साथ,
इस ढलते हुए सूरज को बड़ी शिद्दत से देखते है,
किसने सोचा था ऐसा होगा,
लेकिन खुशकिस्मती है कि हुआ,
पहले रहते थे अपने में ,
अब साथ लेकर किसी का ख़ुद के साथ रहते है,यही जादू है इस रंग का,दाग तो लगता है,पर फिर तन्हाई घर नही करती,घर करता है इश्क़ जिसे एक बार कर के देखो,
ना ही किसी इष्ठ को याद करना है,
ना नमाज़ अदा करने की ज़रूरत।

Thursday, 16 February 2017

सफ़र।

कितना जल्दी अपनों से दूर हो गया,उस उम्र में जब हम अपने
आने वाले वक़्त के बारे में सोचते है,
और मेंनें उसी वक़्त अपनों को अलविदा कहाँ,
ताकि आने वाले वक़्त के बारे में सोच सकूँ पर उनके पास रहकर नही,उनसे कई मीलों दूर ,जहाँ सिर्फ मैं हूँ और मेरा फ़न है।
जब भी बाबा से बात होती है तो पूछते है कब आओगे,
और मैं हमेशा कहता हूँ इस महीने के आखिरी तक,
महीने निकलते जा रहे है,पर ख़त्म होने का नाम नही ले रहे।
कुछ तो उदासी मुझमें भी अब आने लगी है,
पर हौसले उन्ही के दिए हुए है इसलिए इस सफ़र को पूरा करने का दम, कही किसी कोने में अब भी बरक़रार है,
बस अब ज़रुरत है ,तो उसकी तलाश करने की,
जिसका बेसब्री से मुझे इंतज़ार है।

Saturday, 11 February 2017

शहर।

शहर की नसों में रहते है इंसान,
अलग-अलग फ़र्क़ का औढ़वा लिये,
उसी से पलता है उसी से पालता है,
रिश्ते भी मतलब बनाने लगा शहर
नही तो पहले सिर्फ युद्ध कराता था,
सीख गया है ये गालियों का संतरी,
लहू-लहू देखा था जिस
पर अब की कुछ बात और है,
तभी शहर अब शहर नहीं रहे।
                                     -साँझ।

Friday, 10 February 2017

आशियाना।

लगता है कही चलो,अपना आशियाना लिए,
सबसे दूर जहाँ सिर्फ मैं रहूँ और कुछ चीज़े,
तसल्ली हो जाये कि लाश इसी मिट्टी की होगी,
और साँसे, इन हवाओ में कही झिलमिल होकर खो जाएँगी,
और तब मैं कह सकूँगा की,
कुछ नही चाहिए मुझ जैसे एक इंसान को,
बस जन्नत भी मेरी इन्ही वादियों में बना दे,
कोई ये नही बोल सकता यहाँ की मेरा वजूद क्या है,
किस औकात से रह रहा हूँ इस सुकूँ में,
पर कुछ कर रहा हूँ मैं ,वही मेरा खुदा है,
वही मेरी इबादत और, वही मेरी ख़ता।