Wednesday, 1 August 2018

अभी जान बाकी है तुम में।

ग़र हो परेशां ,तो बैठो ज़रा,
चैन की साँसे लो,फिर बताओ ज़रा,
ख़ुद को अभी हवाले मत करो,
अभी जान बाकी है तुम में,
हौसला,जुनून,इन सब को तो ले आएंगे कोड़े दामों में,
बस पहले तुम संभल जाओ,
क्योंकि अभी जान बाकी है तुम में।
ग़र हो परेशां,
तो ख़्यालों को खंगाल लो एक दफ़े,
शायद कही,किसी दबे कोने में,
एक ख़्याल सुलग रहा हो अब तक,
तो दबा देना उसे अपने हाथों से,
कि ख़्याल भी मिट जाए,
और वो माथे पर पड़ी शिकन भी ख़त्म हो,
जिससे अक्सर परेशान रहते थे तुम।
बस अब रुकना मत,चलते रहना बेफ़िक्र,
ग़र फिर भी तकलीफ़ हो,तो बैठ जाना,
और सोचना सिर्फ़ दो बातें,
कि कहाँ से आये और कितने दूर तक,
फ़िर शायद याद आ जाये तुम्हें,
तुम्हारा वो नूर,जो कभी था,
लगेंगे कुछ चंद दिन,हफ़्ते, महीने या साल,
बस चलते रहना मुसलसल,क्योंकि,
अभी जान बाकी है तुम में।

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