शक़ किस बात का है,आज़ादी का!
अरे,अपने पैरों पर चलकर हँस रहे हो,
और किस बात की आज़ादी चाहिए,
जो मन कहता है,वो कह देते हो,
कोई रोक नही कोई टोक नही,
इससे बड़ी आज़ादी और क्या होगी,
फ़र्क़ बस इतना है,कि पहले इंसान बोलते थे,
हज़ारो की जमातो में,
बस अब वही लफ्ज़ ज़ुबाँ से निकलने के बजाय,
कीबोर्ड के खटखट होने से निकलते है।
72 साल हो गए,आज़ाद रहते हुए,
पर कम्बख़्त हम इंसानों में से, कुछ इंसा इतने आज़ाद हो गए,
कि अपनी हदे भूलकर,फिर वो शैतान हो गए,
कि अपनी हदे भूलकर,फिर वो शैतान हो गए,
और भूल बैठे,अपने ईमान,इंसानियत,और इल्म को,
वैसे करते वो भी है खटखट आज के दिन,
72 साल के आज़ाद देश में मेरे।
No comments:
Post a Comment