कहाँ हो तुम?
क्या तुम्हें मेरी याद आती है?
अच्छा है,अगर नही आती तो,
क्योंकि जितनी मुझे आती है,
उसका हिसाब लगाना तुम्हारे बस की बात नही।
क्या तुम्हें हिचकियाँ आती है?
अच्छा है अगर आती है,
क्योंकि हर हिचकी जो तुम्हारे भीतर आती है,
सब का ज़िम्मेदार सिर्फ़ मैं और
मेरे भीतर का एक-एक कतरा है,
जो याद करते-करते हर रोज़ दफ़्न होता है,
कमबख़्त को कितना भी समझाओ,
सुधरना ही नही चाहता,
बस डूबना चाहता है,
उस समंदर में जहाँ एक परिंदा भी पर न मारता हो,
तैरना नही आता,
बस एतमाद है,
कि तुम आओगी बचाने,
और नही आई तो ज़्यादा कुछ नही होगा,
बस फिर तुम्हे कभी हिचकी नही आयेंगी।
क्या तुम्हें मेरी याद आती है?
अच्छा है,अगर नही आती तो,
क्योंकि जितनी मुझे आती है,
उसका हिसाब लगाना तुम्हारे बस की बात नही।
क्या तुम्हें हिचकियाँ आती है?
अच्छा है अगर आती है,
क्योंकि हर हिचकी जो तुम्हारे भीतर आती है,
सब का ज़िम्मेदार सिर्फ़ मैं और
मेरे भीतर का एक-एक कतरा है,
जो याद करते-करते हर रोज़ दफ़्न होता है,
कमबख़्त को कितना भी समझाओ,
सुधरना ही नही चाहता,
बस डूबना चाहता है,
उस समंदर में जहाँ एक परिंदा भी पर न मारता हो,
तैरना नही आता,
बस एतमाद है,
कि तुम आओगी बचाने,
और नही आई तो ज़्यादा कुछ नही होगा,
बस फिर तुम्हे कभी हिचकी नही आयेंगी।
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