Thursday, 12 April 2018

तुम हो।

“तुम मेरे लिए क्या हो?"
क्या तुम वो मीठे पानी का झरना हो?
जिसे देखने के बाद राहगीर अपने मन में,
एक सुकूँ की चादर ओढ़कर सो जाता है,
वैसे ही जैसे,किसी ज़माने में,तिरछी नज़रो के सहारे,
तुम्हारी एक झलक लेने के लिए परेशां रहता था मैं।

क्या तुम उस पुराने रखे हुए बरगद के पेड़ की छाँव हो?
जिसके करीब रहकर सर पे धूप नही पड़ती,
और डर नही रहता,
उस लू का जो गरम हवा के थपेड़े अपने साथ लाती है।

क्या तुम मेरे लिए वो पथिक हो?
जो मेरा हाथ थामकर,
पगडंडी पार करवाता है,
और हौसला देता है,
ये कहकर की,
‘ज़िंदगी की तकलीफों को यूँ हँसकर दफ़ा कर दे,
जैसे वो तेरी मेहमान है और तू उनका मेज़बान।'

पर आख़िर में ये ज़रूर है,
कि तुम हो।:)

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