Monday 26 March 2018

फ़क्र

कुछ कहना चाहता हूँ,सुनोगी?
शायद तुमने सोचा होगा, कि पिछले कुछ दिनों से,
क़लम की स्याही नही उकेरी किसी पन्ने पर,
लेकिन सच कहूँ तो,
इस रुकावट का कोई जवाब ही नही,
पर इतना ज़रूर है,कि आज भी,
इन हर्फ़ों को पढ़ते वक़्त,
लगता है, जैसे सामने तुम ख़ुद बैठी हो,
और मैं तुम्हें ये ख़ुद सुना रहा हूँ।
मुझे आज भी याद है वो झलक,
हाँ, वही पहली झलक, तुम्हें भी याद है ना,
दो साल होने को आ रहे है,
उबड़-खाबड़ रास्तो से भरे दो साल,
फ़िक़्र से भरे दो साल, 
पर फ़क्र से भरा हुआ मैं, कि मुझे तुम मिली,
अब ज़्यादा वक़्त नही है हमारे पास,
बस कुछ चंद राते और है,
फिर किसी और जगह की तपती धूप के सहारे,
सफ़र पे निकल जाने का मन करेगा तुम्हारा,
और मैं तेज़ हवा से लड़ता हुआ एक पेड़ के नीचे जाकर बैठ जाऊंगा,
क्योंकि फिर आँधी के बाद वही मद्धम शाम मेरे सामने होगी,
चाय होगी, सिगरेट होगी, किस्से होंगे,
जिनमें कुछ तुम्हारा ज़िक्र होगा,
तो कुछ हमारा।

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