जो समझना नही चाहता ,
उसे समझा नही सकते,
खुदकी रगों में टुकड़े बचे है उसके,
पर जिसे नही समझना,
उसे समझा नही सकते,
हेकड़ी की बात है,
या जबर्दस्ती अपनी,
बस नही समझना,
यही ज़िद है और यही लकीर,
फिर चाहे आसमां एक हो,
या फिर ख़ुदा समझाने को आये,
पर जिसे नही समझना,
उसे समझा नही सकते।
उसे समझा नही सकते,
खुदकी रगों में टुकड़े बचे है उसके,
पर जिसे नही समझना,
उसे समझा नही सकते,
हेकड़ी की बात है,
या जबर्दस्ती अपनी,
बस नही समझना,
यही ज़िद है और यही लकीर,
फिर चाहे आसमां एक हो,
या फिर ख़ुदा समझाने को आये,
पर जिसे नही समझना,
उसे समझा नही सकते।
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