मंज़िल दूर नही बस उम्मीद पास करनी है,
कुछ सफ़र करना है तो कही चोटियां पार करनी है।
हर वक़्त लोक-लालच में शिकार इंसान होगा,
चोर इंसान होगा तो कोतवाल भी इंसान होगा।
किसी के ज़ख्म भरे नही जाएँगे,
अगर मसीहा होगा तो होठ सिले नही जाएँगे।
ये ज़रूरत है मुझको की अब कोई पनाह दे दे,
अपने दिल में नही तो ज़ुबाँ पर जगह दे दे।
मोहब्बत के फेर का जंग की आड़ में आना ज़रूरी तो नही,
हर वक़्त जंग का फैसला तलवार से आना ज़रूरी तो नही।
मायूस करती है वो गरीबी जहाँ एक रोटी के चार टुकड़े होते है,
खाने वालों की तादाद हज़ारो में,और मनु शर्मसार होते है।
कुछ सफ़र करना है तो कही चोटियां पार करनी है।
चोर इंसान होगा तो कोतवाल भी इंसान होगा।
अगर मसीहा होगा तो होठ सिले नही जाएँगे।
अपने दिल में नही तो ज़ुबाँ पर जगह दे दे।
हर वक़्त जंग का फैसला तलवार से आना ज़रूरी तो नही।
खाने वालों की तादाद हज़ारो में,और मनु शर्मसार होते है।
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