Monday 26 September 2016

गाथा।

आधी रात का वक़्त है ,
ना कोई सो रहा है,
ना सोने दे रहा है,
तारो वाला ज़माना गया अब,
जब सुकून से हमको सुलाते थे,
अब सिर्फ आतंकी जगाने वाले है,
जो माथे पर बैठकर कभी,
हिन्द-पाक की सरहदों पर अड़े है,
ना सोयेंगे ना सोने देंगे।
जम्हूरियत् के नीचे खड़े है,
सल्तनत् के लिए लड़े है,
यही सैनिक् का पेशा है,
एक फ़ोन अभी भी जाता है,
सबको बता पाता है,
माँ, पत्नी, सब सुनते है,
सकुशल सुशोबित हूँ,
सभी प्रेम से औतप्रोत हूँ,
बाल बच्चा छोटा है,
दिन भर बाप के लिए रोता है,
घरवाली दिलासा देती है,
फिर मै हौसला भेजता हूँ।
यार सभी ख़ास बनते है,
कुछ उनमे भाई बनते है,
सभी से रिश्ते अच्छे है,
बन्दूक से रिश्ते सच्चे है,
वतन में रहकर कुछ लोग,
करते है बड़बोलिया,
एक रात बिताके देख,
देखेगा खून की होलिया,
इस हाल में रहता है ,
सरहद पर गश्त देने वाला,
हम को क्या लगता है सब,
उठा बैठ देने वाला।
सभी को सोना है,
सभी को रोना है ,
एक बार फिर सरहद पर,
हमे सुलाकर चल दिए
               हमे सुलाकर चल दिए।

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