Sunday, 11 December 2016

इंतज़ार।

मैं कभी सोचता हूं कि काश इन सारी जद्दोजहद से कुछ वक़्त के लिए तो आराम मिलता। ज़िन्दगी में तकलीफे आती है तो कभी ऐसा मुकाम भी आता है जब सुकून नसीब हो जाता है, पर कुछ बंधा हुआ नही है ,आज कुछ है तो कल कुछ और। इसलिए जब महसूस करता हूं की शायद आज मैं कुछ अच्छा हूं, जैसे इन सांसारिक मोह मायाओ की कोई जगह ही नही मेरी किताब में, पर कभी ऐसा लगता है कि घुट-घुट कर ही किसी बंद कमरे में हमेशा के लिए क़ैद होकर रह जाऊंगा।
तब ज़रुरत लगती है कि काश कोई हो जिसके कंधे पर सर रखकर हम उसमे खोकर दुनिया की सारी चीज़ें भूल जाए। वो कुछ तसल्ली दे ,में थोड़ा आराम करू। में एकदम डरा हुआ किसी हिरण की तरह उसके सीने से जाकर लग जाऊ। माँ तो नहीं है वो पर कोई ऐसा ज़रूर, जिससे बहुत लगाव है और उसके करीब रहने का एक नशा।
ऐसा नही कह सकते की ये चीज़ गलत है, पर ऐसा ज़रूर कह सकते है कि हर किसी की ज़रूरत कही ना कही, कभी ना कभी तो ये रहती ही होगी। क्योंकि ज़रूरत है ,कोई अंदर की बात जिसे किसी से भी साझा नही किया जा सकता वो हम एक सच्चाई के साथ किसी सबसे ज्यादा सच्चे इंसान को बताये। और मुझे इंतज़ार है उस सांझ का,जिसके ढलने के बाद, एक सवेरा, और एक उम्मीद की किरण ज़रूर निकलेगी।

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