Wednesday 11 May 2016

घर में बर्तन बजने वाले है।

आख़िर आज वो दिन आ गया, कई सालो बाद
मोहल्ले में शहनाई बजेगी ,कभी बजी थी पर
 उसको सफ़ेद बालो वाली अम्मा भी भूल गयी,
लेकिन् अब जश्न होगा क्योंकि घर में बर्तन बजने वाले है।

माँ ने अपनी आस भरी नज़र से बेटी को कहा,
लड़के वाले आने में होंगे जा दीदी को तैयार करदे,

छोटी दौड़ते-दौड़ते रोज़ के मुक़ाबले आधे
 समय में ऊपर पहुची, माँ की फ़िक़्र बहन तक
 पहुचाई और बड़े किशोरी मन से दीदी के
 नाख़ून लाल करने शुरू कर दिए।

बड़ी बड़े बेचैन मन से अपनी बैचेनी को बड़ा
रही थी, शायद ये उसकी लालिमा में छुपी किसी
 तरह की चिंता दिखती है।

बाबा के दिन, दिन-ब-दिन घटते जा रहे है,
घर के राशन पानी की व्यवस्था कैसे होगी, क्या
ये चिंता है अपने बाबा की बड़ी बेटी को?

छोटी की उम्र अब किशोरावस्था के
अंतिम चरण में पहुँच गयी है, उसकी विवाह
 की शहनाई कैसे बजेगी ,क्या ये चिंता है
अपनी छोटी की ज़िम्मेदार दीदी को?

चिंताए ,फ़िक्रे ,बेचैनियां ये सब लाज़मी है
पर अंत में समाज और खुद परिवार कह देता है,
घर में बर्तन बजने वाले है।







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