ये वो मुल्क नही,
जहां के हर एक चौराहे पर,
चकल्लसो का बाजार लगता था,
चाय की टपरियों पर,
सियासत के रंग बिखरे रहते थे
ग़ालिब ओर उनके चाहने वाले,
घरो में कैद क्या हुए,
कि पूरी दिल्ली ही सुनसान हो गई,
लोग पहले बम्बई जाया करते थे,
अब वापस आना चाहते है,
उधर बनारस में लोगो को,
बनारसी पान नही मिल रहा,
कश्मीर से मद्रास की तो छोड़ ही दीजिये,
आप अपने मोहल्ले के,
आगे वाले तिराये तक भी नही जा सकते,
और चले गए,
तो क्या पता,
मौत भी कमबख़्त चाइनीज माल हो गई है,
कब यमराज दूत भेज दें,
इससे अच्छा,
भारत बंद ही रहने दें,
ख़ुदा-हाफ़िज़।
ख़ुदा-हाफ़िज़।
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