Monday 11 November 2019

ये ज़माना क्या कहता है।

ये ज़माना क्या कहता है,
क्या ये ज़माना तुम्हें तुम्हारे वजूद को भूलने के लिए कहता है,
जिसकी बिना पर आज तुम इन लफ़्ज़ों को एक शक़्ल दे रही हो,
जिसकी सूरत पर तो किसी को कोई शक़ नही,
मग़र सीरत पर इस ज़माने को बहोत शक़ है।

ये ज़माना क्या कहता है,
क्या ये ज़माना तुम्हें तुम्हारे कपड़ो को लेकर कुछ कहता है,
जिसकी फ़िक़्र तो कभी उस दर्ज़ी ने भी नही की,
जिसके सुई और धागे के जादू से,
कई रेशमी कपडे बनकर तैयार हुए,
मग़र इस ज़माने को तुम्हारे वाल्दैन से ज़्यादा
तुम्हारे कपड़ो की फिक्र 

ये ज़माना क्या कहता है,
क्या ये ज़माना तुम्हें अपने महीने के आख़िरी दिनों में,
उस अचार की बरनी को ना छूने के लिए कहता है,
जिस बात का अर्थ वो भी आजतक तुम्हें नही बता पाए,
जिसकी तफ़सील तो विज्ञान भी अपने दावो में कर चुका है,
मग़र तुम्हारी पाकीज़गी पर इस ज़माने को बहोत शक़ है।

ये ज़माना क्या कहता है,
क्या ये ज़माना तुम्हें घर पर रहकर काम करने के लिए कहता है,
जिनकी इच्छा के विपरीत तुम बाहर जाकर दो पैसे कमाना चाहती हो,
जिससे तुम्हें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए,
किसी के सामने हाथ ना फैलाने पड़े,
मग़र,इस ज़माने को तुम्हारे बाहर जाने पर बहोत शक़ है।

असल मे ये ज़माना बहोत शक़ करता है,
कभी तुम्हारी सीरत पर,
कभी कपड़ो पर,
कभी तुम्हारी पाकीज़गी पर,
तो कभी तुम्हारे बाहर जाने पर,
मग़र तुम भी इस ज़माने को बता दो,
कि ज़माने आते जाते रहेंगे,
मैं चट्टान सी खड़ी हूं,
चाहे ज़माना रहे या ना रहे,
खुदाहफीज़।
                             

4 comments: