करवटें बदलती गयी रात भर,
बस नींद का नामोनिशां नही है,
कुछ तस्वीरें है धुंधली,
तो कहीं ख़्वाब है उलझे।
पुराने अख़बारों जैसे पुराने ख़्वाब,
जिनसे रद्दी की महक़ भी,
केवड़े-सी लगती है,
बस आ पड़ते है वो बेवक़्त,
जब सारा ज़माना नींद में रहता है,
और हम उन्हीं ख़्वाबों की
किसी सकड़ी गली में आँखमिचौली खेला करते है।
एकदम बेसुध होकर,
कि ये भी पता नही चलता,
कब तुम्हें ढूंढ़ते-ढूंढते सवेरा हो गया,
और ख़्वाब ने धीरे से अलविदा करते हुए कहाँ,
“फिर आऊँगा रात के दूसरे पहर में"
ताकि करवटें बदलता रहूं मैं,
और नींद का नामोनिशां भी ना रहे।
बस नींद का नामोनिशां नही है,
कुछ तस्वीरें है धुंधली,
तो कहीं ख़्वाब है उलझे।
जिनसे रद्दी की महक़ भी,
केवड़े-सी लगती है,
बस आ पड़ते है वो बेवक़्त,
जब सारा ज़माना नींद में रहता है,
और हम उन्हीं ख़्वाबों की
किसी सकड़ी गली में आँखमिचौली खेला करते है।
कि ये भी पता नही चलता,
कब तुम्हें ढूंढ़ते-ढूंढते सवेरा हो गया,
और ख़्वाब ने धीरे से अलविदा करते हुए कहाँ,
“फिर आऊँगा रात के दूसरे पहर में"
ताकि करवटें बदलता रहूं मैं,
और नींद का नामोनिशां भी ना रहे।