Tuesday 13 February 2018

काला।

आज अठारह साल से ज़्यादा हो चुके हैे,
पर लोगो ने बताना नही छोड़ा कभी,
कि मैं काला हूँ।

मालूम होने के बावजूद भी बताते है,पर,
ना तो मै उस काले रंग पर चाक घिसकर कुछ उकेर सकता हूं,
और ना ही उस काले रंग में चूना मिलाकर,
उसे सफ़ेद कर सकता हूं,
बल्कि वही अगर साँवला होने के लिए मान जाए,
तो भी मैं उससे पाँच मिनट की दरख़्वास्त ना करु,
ये फ़क्र है मुझे मेरे काले होने पर।

लोगो में इतना उतावलापन रहता है,
एक काले को ये महसूस करवाने का कि वो काला है
अरे,इसी खाल के नीचे,
कई नवाज़,और कई ज़ाकिर पैदा हुए,
जो शायद कई गोरो से आगे है,
तो फिर क्या काला और क्या गोरा।

दरसल इतना काला है ना आज सब,
कि गोरों के ऊपर भी धुँए की एक परत दिखती है,
कुछ सालों में जब सूरज की रोशनी से कैंसर होने लगेगा,
तो सबसे पहले गोरे मरेंगे,
ज्यादती दुश्मनी नही है गोरो से,
बस जिन्होंने पूरी कौम को बदनाम किया,
वही मेरे शिकार है।

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