Sunday 13 August 2017

आज़ादी।

सड़क से जाते-जाते देखा आज,
कि बाज़ारो में अब तिरंगे दिखने लगे है,
दुकानों पर वो भारत देश है मेरा,
जैसे वीर रस के नग़्मे सुनाई दिए,
और तब महसूस हुआ कि हाँ,आज़ादी का जश्न आने वाला है,
वो मीडिया चैंनलों पर अगस्त क्रांति के प्रसारण से लेकर,
राजपथ की झाखियो तक सब ज़ेहन में आने लगा,
बचपन भी याद आया जब जश्न के एक दिन पहले,
शाम के वक़्त बाबा के साथ,तिरंगा लेने जाता था मैं,
जूते पोलिश,कपड़े प्रेस,हाथ में झंडा,सीने पे तिरंगा और
वो पाकसाफ़ वतन परस्ती जो आज कई लोगो के दिलों में,
ज़ंग खा चुकी है, जिसका रंग बहुत गहरा था तब,
पर अब फीखा हो चला है,
शायद छुट्टी समझ बैठे है आजकल लोग इसे,
पर माहौल बनता ज़रूर है हर एक कौम में,
बाज़ार में,और स्कूलों में,
जिसका हिस्सा होने से मैं फक्र करता हूँ,
और तब कुछ पंक्तिया याद आती है,
“वतन की आबरू से मोहब्बत करना सीखा है मैने,
वरना कुछ तो सिर्फ नफ़रत में ज़िन्दगी बीता देते है।"

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