Sunday 9 July 2017

मैक़दे में बैठा हूँ।

मैक़दे में बैठा हूँ नशे की चुनर ओढ़कर,
तस्वीरें मेज़ पर रखी है,मरासिम की मेरे,
देखकर जिन्हें,यादें ख़ुशबू की तरह फैल जाती है,
यही उफनता शबाब है,मरासिम का मेरे।

एक बोतल मदिरे से मेरा कुछ बिगड़ तो नही जायेगा,
मग़र आड़े आने को कुछ है,तो मज़हब है मेरे,
और ये मौसम क्या मेरे साथ चलने वाला है,
सुना है,आज तो काफ़िले में बादल भी है मेरे।

ये जिंदानुमा लाश अब खानाबदोश हो चली है,
इसे ले जाकर बेच दो,देखते है क्या दाम देता है मेरे,
उन्ही पैसों से अर्थी का हिसाब-किताब देख लेना,
आदत में नही है,क़र्ज़ लेकर जन्नत में जाना मेरे।

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