Tuesday, 13 November 2018

तुम मुझे ले जाना अपने घर।

तुम मुझे ले जाना अपने घर,
ताकि तुम्हारे घर के कोनो में रखीं
एक-एक चीज़ को मैं बा-इज़्ज़त याद कर सकूँ,
ताकि तुम्हें हमारा घर 'अपने' घर के मुक़ाबले
ज़रा भी पराया ना लगे,
ताकि तुम्हारे मन में वो नई जगह जाने के बाद आने वाली कसक महसूस ना हो,
जिससे अक़्सर परेशां रहते है कुछ लोग,
सवाल रहा वालिद-वालिदा का,
तो उनके जैसे हमशक्ल तो नही ला सकता मैं,
मग़र थोड़ा बहुत सीख सकता हूँ,
तुम्हें संभालना,
चंद दिनों में,
बस तुम मुझे ले जाना अपने घर,
जिससे मैं उस घर के कोनों में रखीं हरेक चीज़ को बा-इज़्ज़त याद कर सकूँ।

Thursday, 1 November 2018

सब कुछ है,बस तुम नही।

इस चाँद की चांदनी में,
ढूंढ रहा हूँ तुम्हें,
तारों से पूछ रहा हूँ तुम्हारा पता,
तुम्हारी गली,शहर,इलाका,
सब धीरे-धीरे जान रहा हूँ,
पर ये तारे खुले तौर पर कुछ कहने से कतरा रहे है,
क्या तुमने उन्हें डराकर,
धमकाकर,चुप करवा दिया है!
मैं भी नही चाहता तुम्हें ढूंढना,
पर उस बेचैनी का क्या,
जो दिल के दरवाज़े पर दस्तक देती है,
रोज़,दबे पाँव,धीरे से,
और फिर तुम्हारे बारे में पूछती है,
खड़ा रहता हूँ आँखे नीची करके,
क्योंकि जवाब नही होता,
कैसे समझाऊं उसे तुम्हारी ज़िद,
वो तो बस मासूमियत से,
तुम्हारी खोज में निकल जाती है,
बस!अब तुम आ जाओ,
अब और ये आंखमिचोली का खेल मुझसे तो नही खेला जाता,
पूछता हूँ चाँद से,शायद कही कुछ सुराग़ बता दे,
इस चाँद की चांदनी में,
जहां तारे है,चांद है,पहाड़ है,आसमां है,सब कुछ है,
बस तुम नही।