Saturday, 23 December 2017

कैसी है वो।

दिन मेरा ढलता है रोज़,ये सोचकर कि ‘कैसी है वो?'
साल का हर एक दिन,
मुझे रोज़ कुछ बताता था,
मिसाल के तौर पर एक रोज़ वो दौड़ते-दौड़ते मेरे पास आया,
और कहता है,
“वो मासूम है,"
मैं खड़ा रहा ख़ामोश,
और सुनता रहा उसे,
बस नज़रे कहीं खो सी गयी थी मेरी
एक रोज़ जब पूर्णिमा का चाँद अपने उफ़ान पर था,
इश्क़ में डूबा हुआ,तब दिन ने,
धीरे से आकर मेरे कान में फुसफुसाया,
“वो बहुत ख़ूबसूरत है।"
इतना बताने के बावजूद हमेशा मैं मेरे लफ्ज़-ए-बयाँ में खुश था,
ज़्यादा नही सोचा कभी,
बस एक शाम,सूर्यास्त के वक़्त,
एक ख़्याल धीरे से मेरे मन में दबिश देता है,और कहता है,
“वो दिल की साफ़ है।”
हाँ, मैं नही जानता उसे पूरी तरह,
पर एक दफ़ा,साथ में जुगलबंदी करने की ख़्वाईश ज़रूर रखता हूं मैं।

Thursday, 14 December 2017

तिलिस्म।

उसे मेरे उर्दू के शब्द बहुत पसंद है,
पर मुझे वो सीधे तरह से 
बात करने की सलाह देती है,
कल मैंने भी कह दिया,
नही बदल सकता अपना लहज़ा,
और वो भी बड़े मासूमियत से मान गयी।
वो रात का पहला पहर,
जब कोई दूर-दूर तक नही था,
सिवाय इस सर्दी की धुंध के,
पर सुकून की बात थी,कि तुम थी,
लेकिन कमबख्त क़िस्मत लंबी नही चली,
और सुबह मेरे सपने का तिलिस्म टूट गया।