दिन मेरा ढलता है रोज़,ये सोचकर कि ‘कैसी है वो?'
साल का हर एक दिन,
मुझे रोज़ कुछ बताता था,
मिसाल के तौर पर एक रोज़ वो दौड़ते-दौड़ते मेरे पास आया,
और कहता है,
“वो मासूम है,"
मैं खड़ा रहा ख़ामोश,
और सुनता रहा उसे,
बस नज़रे कहीं खो सी गयी थी मेरी
एक रोज़ जब पूर्णिमा का चाँद अपने उफ़ान पर था,
इश्क़ में डूबा हुआ,तब दिन ने,
धीरे से आकर मेरे कान में फुसफुसाया,
“वो बहुत ख़ूबसूरत है।"
इतना बताने के बावजूद हमेशा मैं मेरे लफ्ज़-ए-बयाँ में खुश था,
ज़्यादा नही सोचा कभी,
बस एक शाम,सूर्यास्त के वक़्त,
एक ख़्याल धीरे से मेरे मन में दबिश देता है,और कहता है,
“वो दिल की साफ़ है।”
हाँ, मैं नही जानता उसे पूरी तरह,
पर एक दफ़ा,साथ में जुगलबंदी करने की ख़्वाईश ज़रूर रखता हूं मैं।
साल का हर एक दिन,
मुझे रोज़ कुछ बताता था,
मिसाल के तौर पर एक रोज़ वो दौड़ते-दौड़ते मेरे पास आया,
और कहता है,
“वो मासूम है,"
मैं खड़ा रहा ख़ामोश,
और सुनता रहा उसे,
बस नज़रे कहीं खो सी गयी थी मेरी
एक रोज़ जब पूर्णिमा का चाँद अपने उफ़ान पर था,
इश्क़ में डूबा हुआ,तब दिन ने,
धीरे से आकर मेरे कान में फुसफुसाया,
“वो बहुत ख़ूबसूरत है।"
इतना बताने के बावजूद हमेशा मैं मेरे लफ्ज़-ए-बयाँ में खुश था,
ज़्यादा नही सोचा कभी,
बस एक शाम,सूर्यास्त के वक़्त,
एक ख़्याल धीरे से मेरे मन में दबिश देता है,और कहता है,
“वो दिल की साफ़ है।”
हाँ, मैं नही जानता उसे पूरी तरह,
पर एक दफ़ा,साथ में जुगलबंदी करने की ख़्वाईश ज़रूर रखता हूं मैं।