Saturday, 20 May 2017

ज़िक्र।

मन अब हल्का हो गया है,
कुछ थी बाते अनकही,
जिन्हें एक सागवान के बक्से में,
कई वक़्त पहले रख दिया था,
ख़ामोशी की तालीम देकर,
हाँ, वो सीख गयी थी,पर
गुस्ताख़ी करना,आवाज़ उठाना,
उन्हें आज़ाद होना था,या कहे,
की आबाद होना था,
शब्दों को ज़िंदा किया,
लगाम लगायी,और फिर वहाँ तक पहुँचाया,
जहाँ उनकी मंज़िल थी,
वो मंज़िल जो हमारा रास्ता है
सरल,सुंदर, और स्पष्ट।

Saturday, 6 May 2017

दर्शन।

मंज़िल दूर नही बस उम्मीद पास करनी है,
कुछ सफ़र करना है तो कही चोटियां पार करनी है।

हर वक़्त लोक-लालच में शिकार इंसान होगा,
चोर इंसान होगा तो कोतवाल भी इंसान होगा।

किसी के ज़ख्म भरे नही जाएँगे,
अगर मसीहा होगा तो होठ सिले नही जाएँगे।

ये ज़रूरत है मुझको की अब कोई पनाह दे दे,
अपने दिल में नही तो ज़ुबाँ पर जगह दे दे।

मोहब्बत के फेर का जंग की आड़ में आना ज़रूरी तो नही,
हर वक़्त जंग का फैसला तलवार से आना ज़रूरी तो नही।

मायूस करती है वो गरीबी जहाँ एक रोटी के चार टुकड़े होते है,
खाने वालों की तादाद हज़ारो में,और मनु शर्मसार होते है।