कुछ दिनों पहले,
मेरी किसी से एक मुलाक़ात हुई,
एक अंजाने शहर में हम मिले,
लेकिन हमारा मिलना अंजाना नहीं था।
मुझे लगा जैसे हम कई सालों बाद फिर मिल रहे हैं,
एक-दूसरे की नब्ज़-नब्ज़ से वाक़िफ़।
तुम्हारा मेरी बाइक पर बैठकर सीधा मुझसे गले लग जाना,
उसका एक छोटा सा उदाहरण है।
उस दिन तुम्हारा मेरा होना,
और मेरा तुम्हारा — इस ख़्वाब में बहुत प्रेम था,
प्रेम जो बस प्रेम था,
होशो-हवास से परे।
मुझे याद भी नहीं कि मैं कितना होश में था,
पर तुमसे लिपटकर तुम्हारे भीतर सिमट जाना,
एकदम अनोखा था, प्यारा था।
हम सुबह तक जागे हुए थे,
कभी मैं तुम्हें अपनी बाहों में ले लेता,
तो कभी तुम मुझे अपनी बाहों में भर लेती।
मुझे न,
सबसे अच्छा लगा तुम्हें गुदगुदी करना,
सर से लेकर पाँव तक।
जब तुम मेरे सामने बिस्तर पर थीं, बिना किसी परवाह के —
बेख़ौफ़, सुंदर, कामुक, और बहुत सरल।